Friday, 11 March 2016

झीक्रे नबी से क़ल्ब को मेरे जिला मिले ▪▫▪ नआत पाक ▪▫▪


▪▫▪ नआत पाक  ▪▫▪

झीक्रे नबी  से क़ल्ब को मेरे जिला मिले 
"नआते  नबी   लिखूं तो कलम को झिया मिले"

मुश्किल हो कोई या हो कोई सोज़ क़ल्ब में
विर्दे-दरूदे पाक   से फ़ौरन शीफा मिले

खुद को सनवारें हम जो सुन्न ऐ दोस्तो!
जीने का फिर जहां में अजब सा माझा मिले

मेरी नमाज, रोझा फ़क़त इसलिये तो हैं
रब कि, रसुले पाक, मुज्ह्को रझा मिले  

आक़ा  कि झीन्दगी पे गुझारे जो झीन्दगी
मुमकिन नही केह हषर मे उसको साझा मिले 

झन, झर, जामीन कि नाही हम को कोई तलब
हां बस हमें मिले तो दरे-मुस्तफा मिले

बु-बक्र ؓ  सा यक़िन, वो उस्मान ؓ सी ह्या 
अद्ले-उमरؓ , अली ؓ का हमें हौसला मिले

मेहशर में हो नसीब शफ़ाअत रसूल ﷺ की
ऐ नूर नआत लिखने का बस ये सिला मिला

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कोशिश: नून मीम। नूरमुहम्मद  बशीर
कौसा, मुंब्रा, थाना, भारत
24 जमादी अव्वल 1437  _ 5 मार्च 2016


8 comments:

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