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Friday, 11 March 2016

झीक्रे नबी से क़ल्ब को मेरे जिला मिले ▪▫▪ नआत पाक ▪▫▪

▪▫▪ नआत पाक  ▪▫▪ झीक्रे नबी ﷺ से क़ल्ब को मेरे जिला मिले  "नआते  नबी ﷺ  लिखूं तो कलम को झिया मिले" मुश्किल हो कोई या हो कोई सोज़ क़ल्ब में विर्दे-दरूदे पाक ﷺ  से फ़ौरन शीफा मिले खुद को सनवारें हम जो सुन्न ऐ दोस्तो! जीने का फिर जहां में अजब सा माझा मिले मेरी नमाज, रोझा फ़क़त इसलिये तो हैं रब कि, रसुले पाकﷺ, मुज्ह्को रझा मिले   आक़ाﷺ  कि झीन्दगी पे गुझारे जो झीन्दगी मुमकिन...

Wednesday, 17 February 2016

अहले दुनिया तो समझ बैठे सुख़नवर मुझको - ग़ज़ल

ग़ज़ल  अब न भाए कोई महफ़िल कोई मंज़र  मुझको "कोई देता है सदा दूर से अक्सर मुझको" कोई तरकीब नई ढूंढ ले अब तू  जानम तेरी हर चाल तेरा वॉर  है अज़बर मुझको एक दिन आएगा, हाँ होगा, हाँ आएगा अपनी उल्फत का  बना लेगा तू मेहवर मुझको  निआमतें  लाख अता की हैं मरे रब  तूने दे दे अब एक हसीं नेक सी दुख्तर  मुझको संगे अस्वद में भी किया रब ने असर रक्खा है  एक बोसे से बना दे वो मुनव्वर मुझको  मेरी अवक़ात नहीं फिर भी बना दे हे मौला मेरे आक़ा ﷺ के गुलामों का ही नौकर मुझको  मैंने...

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