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Thursday, 15 October 2015

ग़ज़ल - नज़र मिली ना हुआ उनसे रूबरू अबतक

ग़ज़ल नज़र मिली ना हुआ उनसे रूबरू अबतक मैं उनको देख लूँ है दिल की आरज़ू अबतक निगाहे इश्क़ से देखो तुम्हें नज़र आये शफ़क़ तराज़ है शब्बीर का लहू अबतक नया लिबास सिलाया है हम ने फिर कियूंकर ? दिखाई तुम को ही देता है वो रफू  अबतक ? वो जिन को हम ने बताया था दोस्ती किया है वही बने हैं मरी जॉन के अदु अबतक में भूल सकता नहीं हाल ज़ख़्मी बर्मा का वहाँ महकता है मोमिन! तेरा लहू अबतक खुद ने मेरे...

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