Wednesday, 17 May 2017
Friday, 11 March 2016
झीक्रे नबी से क़ल्ब को मेरे जिला मिले ▪▫▪ नआत पाक ▪▫▪
▪▫▪ नआत पाक ▪▫▪
झीक्रे नबी ﷺ से क़ल्ब को मेरे जिला मिले
"नआते नबी ﷺ लिखूं तो कलम को झिया मिले"
मुश्किल हो कोई या हो कोई सोज़ क़ल्ब में
विर्दे-दरूदे पाक ﷺ से फ़ौरन शीफा मिले
खुद को सनवारें हम जो सुन्न ऐ दोस्तो!
जीने का फिर जहां में अजब सा माझा मिले
मेरी नमाज, रोझा फ़क़त इसलिये तो हैं
रब कि, रसुले पाकﷺ, मुज्ह्को रझा मिले
आक़ाﷺ कि झीन्दगी पे गुझारे जो झीन्दगी
मुमकिन नही केह हषर मे उसको साझा मिले
झन, झर, जामीन कि नाही हम को कोई तलब
हां बस हमें मिले तो दरे-मुस्तफाﷺ मिले
बु-बक्र ؓ सा यक़िन, वो उस्मान ؓ सी ह्या
अद्ले-उमरؓ , अली ؓ का हमें हौसला मिले
मेहशर में हो नसीब शफ़ाअत रसूल ﷺ की
ऐ नूर नआत लिखने का बस ये सिला मिला
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कोशिश: नून मीम। नूरमुहम्मद बशीर
कौसा, मुंब्रा, थाना, भारत
24 जमादी अव्वल 1437 _ 5 मार्च 2016
Wednesday, 17 February 2016
अहले दुनिया तो समझ बैठे सुख़नवर मुझको - ग़ज़ल
ग़ज़ल
अब न भाए कोई महफ़िल कोई मंज़र मुझको
"कोई देता है सदा दूर से अक्सर मुझको"
कोई तरकीब नई ढूंढ ले अब तू जानम
तेरी हर चाल तेरा वॉर है अज़बर मुझको
एक दिन आएगा, हाँ होगा, हाँ आएगा
अपनी उल्फत का बना लेगा तू मेहवर मुझको
निआमतें लाख अता की हैं मरे रब तूने
दे दे अब एक हसीं नेक सी दुख्तर मुझको
संगे अस्वद में भी किया रब ने असर रक्खा है
एक बोसे से बना दे वो मुनव्वर मुझको
मेरी अवक़ात नहीं फिर भी बना दे हे मौला
मेरे आक़ा ﷺ के गुलामों का ही नौकर मुझको
मैंने जब नूर कही दिल की लगी दुनिया से
अहले दुनिया तो समझ बैठे सुख़नवर मुझको
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बक़लम - नून मीम - नूर मुहम्मद इब्ने बशीर
Thursday, 15 October 2015
ग़ज़ल - नज़र मिली ना हुआ उनसे रूबरू अबतक
ग़ज़ल
नज़र मिली ना हुआ उनसे
रूबरू अबतक
मैं उनको देख लूँ
है दिल की आरज़ू अबतक
निगाहे इश्क़ से देखो
तुम्हें नज़र आये
शफ़क़ तराज़ है शब्बीर का
लहू अबतक
नया लिबास सिलाया
है हम ने फिर कियूंकर ?
दिखाई तुम को ही देता
है वो रफू अबतक ?
वो जिन को हम ने बताया
था दोस्ती किया है
वही बने हैं मरी जॉन
के अदु अबतक
में भूल सकता नहीं
हाल ज़ख़्मी बर्मा का
वहाँ महकता है मोमिन!
तेरा लहू अबतक
खुद ने मेरे नबी को
वो रफअतें बख्शी
अज़ल की सुबह से है
उनकी गुफ्तगू अबतक
जवानी बीत गयी नज़द
है बुढ़ापा पर
नमाज़ ठीक है तेरी, ना ही वज़ू अबतक
बड़ा महाल है दुनिया
में अब तो रहना नूर
बड़े जतन से बचाई
है आबरू अब तक
नून मीम - नूर मुहम्मद
इब्ने बशीर
Monday, 13 July 2015
Tuesday, 3 March 2015
Thursday, 12 February 2015
अमृत नगर - कोसा मार्किट का हल !!!!
सम्मानित श्री जयतनद आव्हाड साहब
शिष्टाचार और तसलीमात !!!
मुंब्रा और और कौसा - अमृत नगर की सड़क पर ट्रैफिक एक बहुत बड़ी समस्या है और विशेष "अमृत नगर
- गुलाब पार्क के बाजार के सामने तो शाम के समय सड़क पर तो हमेशा ट्रैफिकजाम रहता है
और उसका सारा आरोप रोड से लगे फुटपाथ पर वर्तमान बाजार को लगाया जाता है।
वास्तव में। .. फुट पाथ से कनेक्ट बाजार ही इस मुद्दे के कारण
है और इसी वजह से इस क्षेत्र में अक्सर सड़क जाम हो जाया करती है और शायद इसकी शिकायत
कई बार नगर ऑफिसर्स को की जाती है, परिणामस्वरूप
"एक समय बाद नगर पालिका के सदस्य हरकत में आते हैं और फुटपाथ से लगे बाजार को
तोड़ दिया जाता है। जैसा कि कल / परसों तोड़ा गया।।।। लेकिन कुछ समय बाद फिर वहीं बाजार
बस जाता है और फिर वही सर्किल। . . . . . ।।
वही बाजार।। वही ट्रैफिकजाम। । और वही तोड़फोड़।।। खैर यह सिलसिला चलते रहता है।
इसी सिलसिले में आप ने
शिमला पार्क क्षेत्र में एक नया बाजार बसाने का जो कदम उठाया है, वास्तव में वह स्वागत
योग्य है लेकिन। । । शायद ही कौसा की जनता आपके इस बाजार से खुश है !!
कारण यह है कि। । .आप परिचित होंगे कि मुंब्रा कौसा गरीब और
मध्यम आबादी वाला क्षेत्र है। आपके बनाए हुए बाजार में जाने और आने के लिए कम से कम
एक व्यक्ति को 50 रुपये खर्च करना होंगे - (अमृत नगर से शिमला पार्क - रिटर्न - 20
रुपये और शिमला पार्क से अंदर बाजार तक कम से कम रिक्शा किराया 15 -15 रुपये है ) अब
आप अनुमान लगालें कि कौसा की गरीब जनता में इतनी क्षमता है कि रोजाना 50 रुपये खर्च
कर सके? ? ? इसके अलावा कौसा कबरस्तान
से लेकर शिमला पार्क तक की सड़क पर हमेशा यातायात जाम की समस्या होता है अगर अमृत नगर
और आसपास के लोगों का रुख भी इस ओर मोड़ा जाए तो न जाने इस रोड की क्या दशा होगी। ।
।
अब सवाल यह है कि क्या इस समस्या का कोई स्थायी समाधान है भी
या नहीं ???
मेरी निजी राय है कि यदि प्रशासन गंभीरता से इस मामले को ले
तो यह बाजार की समस्या हल किया जा सकता है इसी संबंध में कुछ सुझाव जो मेरे मन में
थे ... आपकी भेंट कर रहा हूँ। ।
• सबसे पहले तो जो हिस्सा
नगर पालिका ने बाजार के लिए खास किया था उसे उसी तरह रहने दिया जाए (यानी कि सड़क और
बाजार के बीच में जो लोहे की जाली / बाड़ लगाई गई थी। बाजार इसी के भीतर लगाने की अनुमति दी जाए)
• और बाहर जो भी ठेला लगाने की कोशिश करे। नगर पालिका के कर्मचारियों पर सख्त से सख्त कार्रवाई करे। चाहे वह कोई भी हो।
• दूसरे यह कि बाजार से कनेक्ट सड़क पर वाहनों की पार्किंग निषिद्ध कर दी जाए। कई बार देखने में आता है कि एक एक नहीं दो दो लाइन में वाहन पार्क की जाती है और यातायात पुलिस इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देती - कम से कम शाम के समय तो वहां पार्किंग की बिल्कुल अनुमति न दी जाए।
(यातायात पुलिस से यह बात याद
आई कि मुंब्रा - कौसा में यातायात पुलिस का शायद ही कोई काम होता होगा।। जहां आवश्यकता
है वहां तो इन साहिबान के दर्शन नहीं होते। लेकिन सुबह के समय में रिक्शा वालों पर
अधिक चौथी सीट बिठाने के अपराध में फाइन लेने के लिए ये लोगों बड़े व्यस्त दिखाई देते
हैं।।। खैर)
उपरोक्त कुछ गज़ारशात पर प्रशासन अगर गंभीरता से विचार करे तो
उम्मीद है कि अमृत नगर के बाजार और सड़क यातायात दोनों समस्याओं बड़ी आसानी से हल किया
जा सकता है ... हो सकता है कि नगरपालिका के उच्च अधिकारियों के पास इससे बेहतर समाधान
हो। । । मगर अनुरोध यही है कि बाजार को रहने दिया जाए।
आशा है कि आप इस मामले को बेहतरीन तरीके से जल्दी हल करेंगे
नून मीम
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